मंगलवार, 16 नवंबर 2021

जम्भेश्वर भगवान प्रश्नोत्तरी

 जम्भेश्वर भगवान प्रश्नोत्तरी


*प्रश्न1.जांभोजी कितने वर्ष तक मौन रहे ?

*उत्तर 1:-7 वर्ष तक मौन रहे ।

 *प्रश्न2. जांभोजी ने कितने वर्ष तक गायों को चराई थी ?

*उतर 2:-27 वर्ष

*प्रश्न 3:- जांभोजी ने कितने वर्ष तक शब्द सुनाएं ?

*उतर 3:- 51 वर्ष तक शब्द सुनाए थे !!

*प्रश्न 4.जांभोजी ने किस पंथ की स्थापना की ?

*उत्तर 4:- विश्नोई पंथ !!

 *प्रश्न 5. जांभोजी में पंथ की स्थापना कब की ?

*उत्तर 5:- विक्रम संवत 1542ई.में !!

 *प्रश्न 6:- जांभोजी की माता का नाम बताईये ?

*उतर 6:- हंसा देवी

 *प्रश्न 7:-भगवान जांभोजी का अवतार कब हुआ

*उतर 7:- विक्रम संवत 1508 भादवा बदी अष्टमी को

 *प्रश्न 8:- भगवान जांभोजी का अवतार क्यों हुआ

*उतर8:- प्रह्लाद के बिछड़े 12 करोड़ों जीवों के उद्धार के लिए

 *प्रश्न 9:- जांभोजी के अवतार स्थल का नाम बताइए ?

*उत्तर9:- पीपासर (नागौर)

 *प्रश्न 10:- जांभोजी के पिता का नाम बताइईये ?

*उतर10:-लोहट जी पंवार

*प्रश्न 11:- जांभोजी के दादाजी का नाम बताओ ?

*उत्तर11:- रावल जी (रोलोजी)

*प्रश्न 12:- जांभोजी के नानाजी का नाम बताते हुए गोत्र एवं गांव का नाम लिखें ?

*उत्तर12 :-मोहकम सिंह जी भाटी छापर (चूरू)

 *प्रश्न 13:- जांभोजी के वंश का नाम बताइए ?

*उत्तर13:- विक्रमादित्य की बयालीसवीं पीढी क्षत्रिय वंशज

 *प्रश्न 14:- जांभोजी के बुआ जी का नाम बताइए ?

*उत्तर 14:-तातू देवी !

*प्रश्न15:-जांभोजी ने किसे भातं भराया और कहां पर ?

 *उत्तर15:-जाम्भोजी ने अपनी शिष्या उमा बाई को भात भराया रोटू धाम में

प्रश्न16:- जांभोजी ने खेजड़ी का बाग कहां लगाया था ?

उत्तर16:-रोटू धाम में 3700 खेजड़ी के वृक्ष लगाकर खेजड़ी का बाग लगाया

प्रश्न17:- जांभोजी के मुख्य अष्ट धाम का नाम लिखें ?

उत्तर17:-मुख्य अष्ट धाम

     1-पीपासर

     2-समराथल

     3-मुकाम

     4-लालासर

     5-जांगलू धाम

     6-रोटू धाम

     7-जाम्भोलाव

    8-लोदीपुर

 *प्रश्न18:- जंभसरोवर कब खुदवाया गया था ?

*उत्तर18:-जाम्भोजी ने जम्भ सरोवर विक्रम संवत् 1566 में खुदवाया था

*प्रश्न19:- जाम्भोलाव तलाव खुदवाते समय जोधपुर का महाराजा कौन था ?

*उत्तर19:-राजा राज जेतसिंह

*प्रश्न20:-श्री गुरू जंभेश्वर भगवान ने किस राजा की कोढ़ झड़ाई थी ?

*उत्तर20:-राजा जैतसिंह( जैसलमेर )

*प्रश्न21:-दो मुसलमान भगत जो गुरू जाम्भोजी के प्रति श्रद्धा रखते थे

*उत्तर21:-हासम और कासम

*प्रश्न22:- किस रानी की कोड़ी नगरा गुरूजी ने मिटाया ?

*उत्तर22:-झाली रानी चित्तौड़ की !!

*प्रश्न23:- विश्नोई रत्न कौन है?

*उत्तर23:-विश्नोई रत्न चौधरी भजनलाल जी विश्नोई है

*प्रश्न24:-खेजड़ली बलिदान किस राजा के राज में हुआ ?

*उत्तर24:-राजा अभयसिंह के राज में !!

*प्रश्न25:-जाम्भोजी ने सृष्टि से पूर्व की अवस्था को कैसा बताया हैं?

*उत्तर25:-गोवलवास

*प्रश्न26:-सैंसा का अभिमान कैसे दूर किया?

*उत्तर26:-भिक्षा मांगकर

*प्रश्न27:-जाम्भोजी ने भूआ तातूं को कौनसा मंत्र सिखाया था?

*उत्तर27:-संध्या नवण मंत्र

*प्रश्न28:-जाम्भोजी द्वारा पशुओं का नाम लेकर पानी पिलाने का चमत्कार किसने देखा था?

*उत्तर28:-राव दूदा ने

*प्रश्न29:-मनुष्य से दैवत्व की ओर प्रयत्नशील होने पर किसकी प्राप्ति होती हैं?

*उत्तर29:-मोक्ष

*प्रश्न30:-शब्द संख्या 29 किस नाम से जाना जाता हैं?

*उत्तर30:-ईलोल सागर शब्द

*प्रश्न31:-हमारे विश्नोई धर्म में कुल कितने संस्कार माने जाते हैं ?

*उत्तर31:-चार संस्कार ।

 *प्रश्न32:- 29 धर्म की आखड़ी ह्रदय दरियों जोय: जांभोजी कृपा करी नाम विश्नोई होय " किसके द्वारा रचित है ?*

*उत्तर32:-श्री ऊदो जी ।

*प्रश्न 33:- जांभोजी ने पहला शब्द किसको सुनाया ?

*उत्तर33:-खेमनराय पुरोहित।

*प्रश्न34:- खेम नारायण को क्या चमत्कार दिखाया ?

*उत्तर34:-खेमनराय पुरोहित ने धी के 64दीपक जलाने का प्रयास किया परन्तु वे नहीं जले तब जाम्भोजी ने कच्चे घड़े में कच्चे सूत से कुएं से जल लाकर उससे दीपक जलाकर खेमनराय को परचा दिया और प्रथम सबद उच्चारित कर उपदेश दिया

*प्रश्न35:-पहले शब्द में किस की व्याख्या की गई है ?

*उत्तर35:-पहले सबद (ओउम गुरु चिन्हों गुरू चिन्ह पुरोहित गुरू मुख धर्म बखानी ) में गुरू की व्याख्या की गयी है।

*प्रश्न36:-जाम्भोजी की मौजूदगी में रचित साखी किस नाम से जानी जाती हैं?

*उत्तर36:-हजूरी साखी

*प्रश्न37:-जाम्भोलाव तालाब की खुदाई कितने समय में हुई?

*उत्तर37:-छह माह में

*प्रश्न38:-जम्भेश्वरीय संवत् कब प्रारंभ हुआ?

*उत्तर38:-विक्रम संवत् 1593 मिगसर वदी नवमी को

*प्रश्न39:-रामड़ावास ग्राम को आबाद किसने किया ?

*उत्तर39:-रामा विश्नोई ने

*प्रश्न40:- विश्नोई धर्म स्थापना के समय पाहल बनाने का कार्यक्रम लगातार कितने दिन चला?

*उत्तर40:-आठ दिन


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रविवार, 7 जून 2020

पर्यावरण की रक्षा के लिए विश्व का सबसे बड़ा बलिदान आन्दोलन-खेजड़ली

पर्यावरण की रक्षा के लिए विश्व का सबसे बड़ा बलिदान आन्दोलन-खेजड़ली


सन् 1730 में जोधपुर के राजा अभयसिंह को युद्ध से थोड़ा अवकाश मिला तो उन्होंने महल बनवाने का निश्चय किया. नया महल बनाने के कार्य में सबसे पहले चूने का भट्टा जलाने के लिए इंर्धन की आवश्यकता बतायी गयी. राजा ने मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी को लकड़ियों की व्यवस्था करने का आदेश दिया, मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी  की नजर महल से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित गांव खेजडली पर पड़ी.

 

मंत्री गिरधारी दास भण्डारी व दरबारियों ने मिलकर राजा को सलाह दी कि पड़ोस के गांव खेजड़ली में खेजड़ी के बहुत पेड़ है, वहां से लकड़ी मंगवाने पर चूना पकाने में कोई दिक्कत नहीं होगी. इस पर राजा ने तुरंत अपनी स्वीकृति दे दी. खेजड़ली गांव में अधिकांश बिश्नोई लोग रहते थे. बिश्नोईयों में पर्यावरण के प्रति प्रेम और वन्य जीव सरंक्षण जीवन का प्रमुख उद्देश्य रहा है. खेजड़ली गांव में प्रकृति के प्रति समर्पित इसी बिश्नोई समाज की 42 वर्षीय महिला अमृता देवी के परिवार में उनकी तीन पुत्रियां आसु, रतनी, भागु बाई  और पति रामू खोड़ थे, जो कृषि और पशुपालन से अपना जीवन-यापन करते थे.

 

खेजड़ली में राजा के कर्मचारी सबसे पहले अमृता देवी के घर के पास में लगे खेजड़ी के पेड़ को काटने आये तो अमृता देवी ने उन्हें रोका और कहा कि “यह खेजड़ी का पेड़ हमारे घर का सदस्य है यह मेरा भाई है इसे मैंने राखी बांधी है, इसे मैं नहीं काटने दूंगी.” इस पर राजा के कर्मचारियों ने प्रति प्रश्न किया कि “इस पेड़ से तुम्हारा धर्म का रिश्ता है, तो इसकी रक्षा के लिये तुम लोगों की क्या तैयारी है.” इस पर अमृता देवी और गांव के लोगों ने अपना संकल्प घोषित किया “सिर साटे रूख रहे तो भी सस्तो जाण” अर्थात् हमारा सिर देने के बदले यह पेड़ जिंदा रहता है तो हम इसके लिये तैयार है. उस दिन तो पेड़ कटाई का काम स्थगित कर राजा के कर्मचारी चले गये, लेकिन इस घटना की खबर खेजड़ली और आसपास के गांवों में शीघ्रता से फैल गयी.

 

 कुछ दिन बाद मंगलवार 21 सितम्बर 1730 ई. (भाद्रपद शुक्ल दशमी, विक्रम संवत 1787) को मंत्री गिरधारी दास भण्डारी लावलश्कर के साथ पूरी तैयारी से सूर्योदय होने से पहले आये, जब पूरा गाँव सो रहा था. गिरधारी दास भण्डारी  की पार्टी ने सबसे पहले अमृता देवी के घर के पास में लगे खेजड़ी के हरे पेड़ो की कटाई करना शुरु किया तो, आवाजें सुनकर अमृता देवी अपनी तीनों पुत्रियों के साथ घर से बाहर निकली.

 

उसने ये कृत्य विश्नोई धर्म में वर्जित (प्रतिबंधित) होने के कारण उनका विरोध किया. तब मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी की पार्टी ने द्वेषपूर्ण भाव से अमृता देवी को उसके पेड़ छोड़ने के बदले रिश्वत में धन मांगा. उसने उनकी मांग मानने से इन्कार कर दिया और कहा कि ये हमारी धार्मिक मान्यता का तिरस्कार व घोर अपमान है. उसने कहा कि इससे अच्छा तो वह हरे पेड़ो को बचाने के लिये अपनी जान दे देगी. और इसके साथ ही उद्घोष किया  “सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” और अमृता देवी गुरू जांभोजी महाराज की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गयी, क्षण भर में उनकी गर्दन काटकर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर तीनों पुत्रियों पेड़ से लिपटी तो उनकी भी गर्दनें काटकर सिर धड़ से अलग कर दिये.

 

यह खबर जगल में आग की तरह फ़ैल गयी. आस-पास के 84 गांवों के लोग आ गये. उन्होनें एक मत से तय कर लिया कि एक पेड़ के एक विश्नोई लिपटकर अपने प्राणों की आहुति देगा. सबसे पहले बुजुर्गों ने प्राणों की आहुति दी. तब मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी ने बिश्नोईयों को ताना मारा कि ये अवांच्छित बूढ़े लोगों की बलि दे रहे हो. उसके बाद तो ऐसा जलजला उठा कि बड़े, बूढ़े, जवान, बच्चे स्त्री-पुरुष सबमें प्राणों की बलि देने की होड़ मच गयी.

 

बिश्नोई जन पेड़ो से लिपटते गये और प्राणों की आहुति देते गये. आखिर मंत्री गिरधारी दास भण्डारी को पेड़ो की कटाई रोकनी पड़ी. ये तूफ़ान थमा तब तक कुल 363 बिश्नोईयों (71 महिलायें और 292 पुरूष) ने पेड़ की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दे दी. खेजड़ली की धरती बिश्नोईयों के बलिदानी रक्त से लाल हो गयी. यह मंगलवार 21 सितम्बर 1730 (भाद्रपद शुक्ल दशमी, विक्रम संवत 1787) का ऐतिहासिक दिन विश्व इतिहास में इस अनूठी घटना के लिये हमेशा याद किया जायेगा.

 

 समूचे विश्व में पेड़ रक्षा में अपने प्राणों को उत्सर्ग कर देने की ऐसी कोई दूसरी घटना का विवरण नहीं मिलता है. इस घटना से राजा के मन को गहरा आघात लगा, उन्होंने बिश्नोईयों को ताम्रपत्र से सम्मानित करते हुए जोधपुर राज्य में पेड़ कटाई को प्रतिबंधित घोषित किया और इसके लिये दण्ड का प्रावधान किया. बिश्नोई समाज का यह बलिदानी कार्य आने वाली अनेक शताब्दियों तक पूरी दुनिया में प्रकृति प्रेमियों में नयी प्रेरणा और उत्साह का संचार करता रहेगा. बिश्नोई समाज आज भी अपने गुरू जांभोजी महाराज की 29 नियमों की सीख पर चलकर राजस्थान के रेगिस्तान में खेजड़ी के पेड़ों और वन्यजीवों की रक्षा कर रहा है.

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

श्रीरामचरितमानस

श्रीरामचरितमानस कौटिल्य एकेडमी


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मंगलवार, 20 नवंबर 2018

गुरु जम्भेश्वर जीवन परिचय

गुरु जम्भेश्वर

श्री गुरू जम्भेश्वर बिश्नोई संप्रदाय के संस्थापक थे। ये जाम्भोजी के नाम से भी जाने जाते है। इन्होंने 1485 में बिश्नोई पंथ की स्थापना की। 'हरि' नाम का वाचन किया करते थे। हरि भगवान विष्णु का एक नाम हैं। बिश्नोई शब्द मूल रूप से वैष्णवी शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है :- विष्णु से सम्बंधित अथवा विष्णु के उपासक। गुरु जम्भेश्वर का मानना था कि भगवान सर्वत्र है। वे हमेशा पेड़ पौधों की तथा जानवरों की रक्षा करने का संदेश देते थे। इन्होंने समराथल धोरा पर विक्रम संवत के अनुसार कार्तिक माह में 8 दिन तक बैठ कर तपस्या की थी|
गुरु जम्भेश्वर
जन्म1451
पीपासर , राजस्थान भारत
मृत्यु1536
व्यवसायधर्मगुरु , पर्यावरणवादी
प्रसिद्धि कारणबिश्नोई समुदाय(हिन्दू) के संस्थापक

मार्बल से बना गुरु जम्भेश्वर का मन्दिर मुकाम, राजस्थान,भारत
राष्ट्रीय पर्यावरण शहीदी स्मारक खेजडली, जोधपुर .jpg
इनका जन्म राजस्थान के नागौर परगने के पीपासर गांव में सन् 1451 में हुआ था।

जीवन परिचयसंपादित करें

जाम्भोजी का जन्म राजपूत परिवार में सन् 1451 में हुआ था। इनके पिताजी का नाम लोहट जी पंवार तथा माता का नाम हंसा देवी (केसर) था, ये अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थे। जाम्भोजी अपने जीवन के शुरुआती 7 वर्षों तक कुछ भी नहीं बोले थे तथा न ही इनके चेहरे पर हंसी रहती थीं। इन्होंने 27 वर्ष तक गौपालन किया। गुरु जम्भेश्वर भगवान ने 34 वर्ष की आयु में बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी। इन्होंने शब्दवाणी के माध्यम से संदेश दिए थे , इन्होंने अगले 51 वर्ष तक में पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया। वर्तमान में शब्दवाणी में सिर्फ 120 शब्द ही है। बिश्नोईसमाज के लोग 29 धर्मादेश (नियमों) का पालन करते है ये धर्मादेश गुरु जम्भेश्वर भगवान ने ही दिए थे। इन 29 नियमों में से 8 नियम जैव वैविध्य तथा जानवरों की रक्षा के लिए है , 7 धर्मादेश समाज कि रक्षा के लिए है। इनके अलावा 10 उपदेश खुद की सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए है और बाकी के चार धर्मादेश आध्यात्मिक उत्थान के लिए हैं जिसमें भगवान को याद करना और पूजा-पाठ करना। बिश्नोईसमाज का हर साल मुकाम या मुक्तिधाम मुकाम में मेलाभरता है जहां लाखों की संख्या में बिश्नोई समुदाय के लोग आते हैं। गुरु जी ने जिस बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी उस 'बिश' का मतलब 20 और 'नोई' का मतलब 9 होता है इनको मिलाने पर 29 होते है बिश+नोई=बिश्नोई/। बिश्नोई संप्रदाय के लोग खेजड़ी (Prosopic cineraria) को अपना पवित्र पेड़ मानते हैं।

जीवनसंपादित करें

श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान (जाम्भोजी) का जन्म राजस्थान के नागौर ज़िले के पीपासर गांव में 1451 कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन एक राजपूत परिवार में हुआ था। भगवान कृष्ण का भी जन्म उसी तिथि को हुआ था। इनके बूढ़े पिता लोहट जीकी 50 वर्ष की आयु तक कोई संतान नहीं थीं इस कारण वे दुखी थे। भगवान विष्णु के बाल संत के रूप में आकर लोहट की तपस्या से प्रसन्न होकर उनको को पुत्र प्राप्ती का वचन दिया। जाम्भोजी ने अपने जन्म के बाद अपनी माँ का दूध नहीं पिया था। साथ ही जन्म के बाद 7 वर्ष तक मौन रहे थे। जाम्भोजी ने अपना पहला शब्द (गुरु चिंहो गुरु चिन्ह पुरोहित) बोला था और अपना मौन खोला था। जम्भ देव सादा जीवन वाले थे लेकिन काफी प्रतिभाशाली थे साथ ही संत प्रवृति के कारण अकेला रहना पसंद करते थे। जाम्भोजी ने विवाह नहीं किया, इन्हें गौपालन प्रिय लगता था। 34 वर्ष की आयु में समराथल धोरा नामक जगह पर उपदेश देने शुरू किये थे। ये समाज कल्याण की हमेशा अच्छी सोच रखते थे तथा हर दुःखी की मदद किया करते थे। मारवाड़ में 1485 में अकाल पड़ने के कारण यहां के लोगों को अपने जानवरों को लेकर मालवा जाना पड़ा था, इससे जाम्भोजी बहुत दुःखी हुए। फिर जाम्भोजी ने उन दुःखी किसानों को वहीं पर रुकने को कहा ; और कहा कि मैं आप की सहायता करूँगा। इसी बीच गुरु जम्भदेव ने दैवीय शक्ति से सभी को भोजन तथा आवास स्थापित करने में सहायता की। हिन्दू धर्म के अनुसार वो काल निराशाजनक काल कहलाया था। उस वक़्त यहां पर आम जनों को बाहरी आक्रमणकारियों का बहुत भय था साथ ही हिन्दू विभिन्न देवी देवताओं की पूजा करते थे। दुःखी लोगों की सहायता के लिए एक ही ईश्वर है के सिद्धांत पर गुरु जम्भेश्वर ने 1485 में बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की।

शिक्षासंपादित करें

जाम्भोजी ने अपने जीवनकाल में अनेक वचन कहे किन्तु अब 120 शब्द ही प्रचलन में हैं जो वर्तमान में शब्दवाणी के नाम से जाने जाते हैं। गुरु जम्भेश्वरजी द्वारा स्थापित पंथ में 29 नियम प्रचलित हैं जो धर्म, नैतिकता, पर्यावरण और मानवीय मूल्यों से संबंधित हैं।

बिश्नोई समुदायसंपादित करें

बिश्नोई हिन्दू धर्म का एक व्यावहारिक एवं सादे विचार वाला समुदाय है; इसकी स्थापना गुरु जम्भेश्वर भगवान ने 1485 में की थी। "बिश्नोई" इस शब्द की उत्पति वैष्णवी शब्द से हुई है जिसका अर्थ है विष्णु के अनुयायी। गुरू महाराज द्वारा बनाये गये 29 नियम का पालन करने पर इस समाज के लोग 20+9 = 29 (बीस+नौ) बिश्नोई कहलाये। यह समाज वन्य जीवों को अपना सगा संबधी जैसा मानते है तथा उनकी रक्षा करते है। वन्य जीव रक्षा करते-करते कई लोग वीरगति को प्राप्त भी हुए है। यह समाज प्रकृति प्रेमी भी है।

खेजड़ली का बलिदानसंपादित करें

खेजड़ली एक गांव है जो राजस्थान के जोधपुर ज़िले में स्थित है यह दक्षिण-पूर्व से जोधपुर शहर से 26 किलोमीटर दूर है। खेजड़ली गांव का नाम खेजड़ी (Prosopic cineraria) पर रखा गया। सन् 1730 में इस गांव में खेजड़ी को बचाने के लिए अमृता देवी तथा कुल 363 बिश्नोई लोगों ने बलिदान दिया था। यह चिपको आंदोलन की पहली घटना थी जिसमें पेड़ों की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया गया।