गुरु जम्भेश्वर
श्री गुरू जम्भेश्वर बिश्नोई संप्रदाय के संस्थापक थे। ये जाम्भोजी के नाम से भी जाने जाते है। इन्होंने 1485 में बिश्नोई पंथ की स्थापना की। 'हरि' नाम का वाचन किया करते थे। हरि भगवान विष्णु का एक नाम हैं। बिश्नोई शब्द मूल रूप से वैष्णवी शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है :- विष्णु से सम्बंधित अथवा विष्णु के उपासक। गुरु जम्भेश्वर का मानना था कि भगवान सर्वत्र है। वे हमेशा पेड़ पौधों की तथा जानवरों की रक्षा करने का संदेश देते थे। इन्होंने समराथल धोरा पर विक्रम संवत के अनुसार कार्तिक माह में 8 दिन तक बैठ कर तपस्या की थी|
जीवन परिचय
जाम्भोजी का जन्म राजपूत परिवार में सन् 1451 में हुआ था। इनके पिताजी का नाम लोहट जी पंवार तथा माता का नाम हंसा देवी (केसर) था, ये अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थे। जाम्भोजी अपने जीवन के शुरुआती 7 वर्षों तक कुछ भी नहीं बोले थे तथा न ही इनके चेहरे पर हंसी रहती थीं। इन्होंने 27 वर्ष तक गौपालन किया। गुरु जम्भेश्वर भगवान ने 34 वर्ष की आयु में बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी। इन्होंने शब्दवाणी के माध्यम से संदेश दिए थे , इन्होंने अगले 51 वर्ष तक में पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया। वर्तमान में शब्दवाणी में सिर्फ 120 शब्द ही है। बिश्नोईसमाज के लोग 29 धर्मादेश (नियमों) का पालन करते है ये धर्मादेश गुरु जम्भेश्वर भगवान ने ही दिए थे। इन 29 नियमों में से 8 नियम जैव वैविध्य तथा जानवरों की रक्षा के लिए है , 7 धर्मादेश समाज कि रक्षा के लिए है। इनके अलावा 10 उपदेश खुद की सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए है और बाकी के चार धर्मादेश आध्यात्मिक उत्थान के लिए हैं जिसमें भगवान को याद करना और पूजा-पाठ करना। बिश्नोईसमाज का हर साल मुकाम या मुक्तिधाम मुकाम में मेलाभरता है जहां लाखों की संख्या में बिश्नोई समुदाय के लोग आते हैं। गुरु जी ने जिस बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी उस 'बिश' का मतलब 20 और 'नोई' का मतलब 9 होता है इनको मिलाने पर 29 होते है बिश+नोई=बिश्नोई/। बिश्नोई संप्रदाय के लोग खेजड़ी (Prosopic cineraria) को अपना पवित्र पेड़ मानते हैं।
जीवन
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान (जाम्भोजी) का जन्म राजस्थान के नागौर ज़िले के पीपासर गांव में 1451 कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन एक राजपूत परिवार में हुआ था। भगवान कृष्ण का भी जन्म उसी तिथि को हुआ था। इनके बूढ़े पिता लोहट जीकी 50 वर्ष की आयु तक कोई संतान नहीं थीं इस कारण वे दुखी थे। भगवान विष्णु के बाल संत के रूप में आकर लोहट की तपस्या से प्रसन्न होकर उनको को पुत्र प्राप्ती का वचन दिया। जाम्भोजी ने अपने जन्म के बाद अपनी माँ का दूध नहीं पिया था। साथ ही जन्म के बाद 7 वर्ष तक मौन रहे थे। जाम्भोजी ने अपना पहला शब्द (गुरु चिंहो गुरु चिन्ह पुरोहित) बोला था और अपना मौन खोला था। जम्भ देव सादा जीवन वाले थे लेकिन काफी प्रतिभाशाली थे साथ ही संत प्रवृति के कारण अकेला रहना पसंद करते थे। जाम्भोजी ने विवाह नहीं किया, इन्हें गौपालन प्रिय लगता था। 34 वर्ष की आयु में समराथल धोरा नामक जगह पर उपदेश देने शुरू किये थे। ये समाज कल्याण की हमेशा अच्छी सोच रखते थे तथा हर दुःखी की मदद किया करते थे। मारवाड़ में 1485 में अकाल पड़ने के कारण यहां के लोगों को अपने जानवरों को लेकर मालवा जाना पड़ा था, इससे जाम्भोजी बहुत दुःखी हुए। फिर जाम्भोजी ने उन दुःखी किसानों को वहीं पर रुकने को कहा ; और कहा कि मैं आप की सहायता करूँगा। इसी बीच गुरु जम्भदेव ने दैवीय शक्ति से सभी को भोजन तथा आवास स्थापित करने में सहायता की। हिन्दू धर्म के अनुसार वो काल निराशाजनक काल कहलाया था। उस वक़्त यहां पर आम जनों को बाहरी आक्रमणकारियों का बहुत भय था साथ ही हिन्दू विभिन्न देवी देवताओं की पूजा करते थे। दुःखी लोगों की सहायता के लिए एक ही ईश्वर है के सिद्धांत पर गुरु जम्भेश्वर ने 1485 में बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की।
शिक्षा
जाम्भोजी ने अपने जीवनकाल में अनेक वचन कहे किन्तु अब 120 शब्द ही प्रचलन में हैं जो वर्तमान में शब्दवाणी के नाम से जाने जाते हैं। गुरु जम्भेश्वरजी द्वारा स्थापित पंथ में 29 नियम प्रचलित हैं जो धर्म, नैतिकता, पर्यावरण और मानवीय मूल्यों से संबंधित हैं।
बिश्नोई समुदाय
बिश्नोई हिन्दू धर्म का एक व्यावहारिक एवं सादे विचार वाला समुदाय है; इसकी स्थापना गुरु जम्भेश्वर भगवान ने 1485 में की थी। "बिश्नोई" इस शब्द की उत्पति वैष्णवी शब्द से हुई है जिसका अर्थ है विष्णु के अनुयायी। गुरू महाराज द्वारा बनाये गये 29 नियम का पालन करने पर इस समाज के लोग 20+9 = 29 (बीस+नौ) बिश्नोई कहलाये। यह समाज वन्य जीवों को अपना सगा संबधी जैसा मानते है तथा उनकी रक्षा करते है। वन्य जीव रक्षा करते-करते कई लोग वीरगति को प्राप्त भी हुए है। यह समाज प्रकृति प्रेमी भी है।
खेजड़ली का बलिदान
खेजड़ली एक गांव है जो राजस्थान के जोधपुर ज़िले में स्थित है यह दक्षिण-पूर्व से जोधपुर शहर से 26 किलोमीटर दूर है। खेजड़ली गांव का नाम खेजड़ी (Prosopic cineraria) पर रखा गया। सन् 1730 में इस गांव में खेजड़ी को बचाने के लिए अमृता देवी तथा कुल 363 बिश्नोई लोगों ने बलिदान दिया था। यह चिपको आंदोलन की पहली घटना थी जिसमें पेड़ों की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया गया।
1 टिप्पणी:
Nice post
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