आरती

आरती


कूँ कूँ केरा चरण पधारो गुरु जम्भ देव,साधु जो भक्त थारी आरती करे |
 महात्मा पुरुष थारी ध्यान धरे|
 जभगुरु ध्यावे सो सर्व सिद्धि पावे,संत करोड़ जन्म किया पाप झरे।
 हिरदय जो हवेली माँहि रहो प्रःभु रात दिन मोतियन की प्रभु माला जो गले।
 कर में कमण्डल शीश पर टोपी , नायना मानो दोय मशाल सी जरे ।। 
 कूँ कूँ केरा चरण.......... 
 सोनेरो सिंहासन प्रभु रेशम केरी गदिया,फूला हॉदी सेज प्रभु वैस्या ही सरे। 
प्रेम रा प्याला थाने पावे थारा साधु जन ,मुकुट छत्र सिर चवर डुले । 
 कूँ कूँ केरा चरण .... 
 शंख जो शहनाई बाजे झींझा करे झननन, भेरी जो नगाड़ा बाजे नोपता घूरे । 
 कंचन केरो थाल कपूर केरी बतियाँ , अगर केरो धूप रवि इंद्र जयूँ जरे ।
 कूँ कूँ केरा चरण ..... 
 मजीरा टँकोरा झालर ,घंटा करे घन्नन्न ,शब्द सुणा सो सारा पातक जरै।
 शेष् से सेवक थारे,शिव से भंडारी ब्रह्मा से खजांची सो जगत घरे। 
 कूँ कूँ केरा चरण .... 
 आरती में आवे आय शीश नवाये ,निश जागरण सुणे जमराज जो डरे। साहबराम सुनावे,गावे,नव निधि पावे,सीधो मुक्त सिधावे काल कर्म जो टरे।
 कूँ कूँ केरा चरण ....

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